lagukatha, jitmohan jha,

maithili aaur mithila

एक आदमीक घर एक सन्यासी पाहुन बनि कs एलखिन। रातिमे गपशपक बीच ओऽ संन्यासी आदमीसँ कहलखिन की अहाँ एहि ठाम ई छोट-मोट खेतीमे की लागल छी ! साइबेरियामे किछु दिन पहिने हम यात्रा पर रही, ओइ ठाम जमीन एतेक सस्ता अछि मानू अहाँकेँ मँगनीम्वे भेट जाएत! अहाँ अपन ई जमींन बेचि कऽ साइबेरिया चलि जाऊ ! ओहिठाम हजारो एकड़ जमीन भेट जाएत एतबे जमीनमे ! ओइ ठामक जमीन बड उपजाऊ छइ, आर ओइ ठामक लोक एतेक सीधा-साधा की करीब-करीब जमींन मुफ्तेमे दऽ देत! ओइ आदमीकेँ वासना जगलनि! ओऽ दोसरे दिन अपन सभ जमीन बेचि कऽ साइबेरिया चलि देलथि! जखन ओऽ साइबेरिया पहुँचला तँ सन्यासीक गप हुनका सत्य लगलनि! ओ ओइ ठामक आदमीसँ पुछलखिन की हम जमीन कीनय लय चाहए छी ! तँ हुनका जबाब भेटलनि, जमीन कीनए हेतु अहाँ जतेक पाइ अनलहुँ यऽ ओकरा राखि दियौ ; आर जीवनक हमरा लग खाली इएह उपाय अछि की जमीन बेचि दी! काल्हि भोर सूरज उगइ पर अहाँ निकलब आर साँझ सूरज अस्त होएबा धरि जतेक जमीन अहाँ घेर सकी घेर लेब ओऽ अहाँक भऽ जाएत!
बस चलैत रहब .........साँझ सूरज डूबए तक जतेक जमीन अहाँ घेर सकब घेर लेब ओऽ अहाँक भऽ जाएत! बस शर्त ई अछि की जतएसँ अहाँ चलब शुरू करब साँझ सूरज डूबएसँ पहिने अहाँकेँ ओही ठाम वापस आबए पड़त !
ओऽ आदमी राति भरि सूति नञि सकलाह, सत्य पुछू तँ यदि हुनका जगह पर अहूँ रहितहुँ तँ ओहिना होइतए; एहेन क्षणमे कियो सुति सकैत छथि? ओऽ आदमी राति भरि योजना बनाबैत रहलाह की कोन तरहसँ कतेक जमीन घेरल जाय! भोर होइते पूरा गामक लोक जमा भऽ गेलखिन। जहिना सूरज उगलथि ओऽ आदमी चलब शुरू केलाह ! चलएसँ पहिने ओऽ रोटी आर पानि सभ संगमे लऽ लेलथि रहए ! रास्तामे भूख प्यास लागै पर सोचने रहथि चलिते-चलिते भोजनो कऽ लेताह! हुनकर खाली इएह सोचब रहनि की कुनू भी स्थितिमे रुकनाइ नञि छइ ! चलैत-चलैत आब ओऽ दौड़ब शुरू कऽ देलखिन सोचलथि बेसी जमीन घेर लेब ! ओऽ दौगैत रहलाह, सोचने रहथि ठीक बारह बजे घुरि जाएब , ताकि सूरज डूबैत-डूबैत वापस पहुँचि सकी ! बारह बाजि गेलनि, ओऽ मीलो चलि चुकलथि रहए, मुदा वासनाक कोनो अंत छइ ? ओऽ सोचऽ लगलाह, बारह तँ बाजि गेलए आब लौटबाक चाही ; मुदा सोझाँ बला जमीन बड़ उपजाऊ छइ कनी ओकरो घेर ली! लौटेत समय कनी तेजीँ स दौगए पड़त आर की एके दिनक तँ बात छइ तेजीसँ दौग लेब !
दौड़ए के चक्करमे ओऽ भूख-प्यास सभ बिसरए देलखिन, नञि ओऽ किछु खेलथि नञि पिलथि बस दौगेत रहलाह! रास्तामे ओऽ रोटी पानि सभ फेक देलखिन ! बस लगातार दौगैत रहलाह। एक बाजि गेलनि मुदा हुनका घुरऽ के मोन नञि होइत रहनि, किएकी आगाँक जमीन आर सुन्दर-सुन्दर रहए ! मुदा आब ओऽ लौटएक प्लान बनेलथि; दु बजे ओऽ लौटब शुरू केलन्हि! हुनका डर सताबए लगलनि की घुरि सकब की नञि ! ओऽ अपन सभ ताकति वापस दौगएमे लगा देलथि ; लेकिन तागति ख़तम होइक करीब रहनि ! सुबहेसँ दौगैत-दौगैत हाँफऽ लगलाह, ओऽ घबराबऽ लगलाह की सूरज डूबए धरि घुरि सकब की नञि ! दुबारा अपन सम्पूर्ण तागति दौगएमे लगाऽ देलथि मुदा आब सुरजो डूबए लगलाह .......! बेशी दूरीयो आब नञि बचलनि, ग्रामीण सभकेँ ओऽ देखऽ लगलाह ! सभ गामक लोक हुनका आवाज़ पर आवाज़ दैत रहनि, सब हुनका उत्साहित करैत रहथिन आबि जाऊ ......आबि जाऊ। ओऽ आदमी सोचए लगलथि की अजीब आदमी एहिठामक छथि ! ओऽ अपन अंतिम दम लगाऽ देलथि, एम्हर सूरज डूबैत छथि आर ओम्हर ओ दौगैत छथि! सूरज डूबैत - डूबैत पाँच - सात गज पहिने ओऽ खसि पड़लाह, तैयो दम नञि तोड़लथि। आब हुनकासँ उठल नञि जाइ छनि, किछ दूरी बाँकी देखि ओऽ घुसकैत- घुसकैत पहुँचए के प्रयास करए लगलाह! सूरजक अन्तिम किरण विलिप्त होइसँ पहिने हुनकर हाथ ओहि जमीन पर पड़ि गेलनि जतएसँ ओऽ दौगब शुरू केलथि रहए ! एक तरफ सूरज डूबल दोसर तरफ हुनकर अंतिम साँस सेहो हुनकर साथ छोड़ि देलकनि। ओऽ मरि गेलाह, बहुत मेहनति केलखिन रहए ! शायद ह्रदयक दौरा पड़ि गेलनि ! ओइ ठाम जमा गामक सब सोझ-साझ कहाबए बला ओऽ दौगएक चक्करमे भूख-प्यास सभ बिसारि देलखिन नञि ओऽ किछ खेलथि नञि पिलथि बस दौगैत रहलाह ! रास्तामे ओऽ रोटी-पानि सभ फेक देलखिन ! बस लगातार दौड़ैत रहलाह। एक बाजि गेलनि मुदा हुनका घुरबाक मोन नञि होइत रहनि, किएकी आगाँक जमीन आर सुन्दर - सुन्दर रहए ! मुदा आब ओऽ लौटेबाक प्लान बनेलथि; दु बजे ओऽ लौटब शुरू केलाह ! हुनका डर लागऽ लगलनि की घुरि सकब की नञि ! ओऽ अपन सब ताकति वापस दौड़एमे लगाऽ देलथि ; लेकिन ताकत ख़त्म हेबाक करीब रहनि ! भोरेसँ दौड़ैत - दौड़ैत हाँफऽ लगलाह, ओऽ घबराबए लगलाह की सूरज डूबए तक घुरि सकब की नञि ! दुबारा अपन सम्पूर्ण तागति दौड़ैमे लगाऽ देलथि मुदा आब सुरजो डूबए लगलाह .......! बेशी दूरियो आब नञि बचलनि। ग्रामीण सबकेँ ओऽ देखए लगलाह ! सब गामक लोक हुनका आवाज़ पर आवाज़ दैत रहनि, सब हुनका उत्साहित करैत रहथिन आबि जाऊ ......आबि जाऊ। ओऽ आदमी सोचए लगलथि, की अजीब आदमी एहिठामक छथि ! ओऽ अपन अंतिम दम लगाऽ देलथि। एम्हर सूरज डूबैत छथि आर ओम्हर ओ दौड़ैतत छथि ! सूरज डूबैत - डूबैत पाँच - सात गज पहिने ओऽ खसि पड़लाह तैयोदम नञि तोड़लथि। आब हुनकासँ उठल नञि जाए छनि। किछु दुरी बाँकी देख ओऽ घुसकैत-घुसकैत पहुँचए के प्रयास करए लगलाह! हँसैत-हँसैत आपसमे बात करऽ लगलाह की अइ तरहक पागल आदमी आबिते जाइत रहैत छथि !ई कुनू नव घटना थोड़े अछि ! अक्सर लोग खबर सुनला पर आबैत रहथि आर अहिना मरैत रहथि ! ई कुनू अपवाद नञि, नियम रहए ओहि सब जमींदारक ! कियो ऐहन नञि भेलाह जे ओऽ जमीनकेँ घेरि कऽ ओकर मालिक बनलाह ! ई (लघु कथा) खाली कहानी मात्र न्ञि अछि ! ई घटना हमर, अहाँ आर सम्पूर्ण संसारक कहानी छी। हमर सभक जीवनक कहानी छी ! हुनके जेकाँ आइ हम सभ कऽ रहलहुँ-ए! हुनके जेकाँ जमीन घेरए के पाछाँ दौगि रहलहुँ-ए की कतेक जमीन घेर ली ! बारह बाजए-ए , दुफरिया होइ-ए, घुरए धरि समय भेलाक बाबजूद कनी आरक चक्करमे हम सब दौगि रहल छी ! ओकरा पाछाँ भूख प्यास सब बिसारि दए छी ! सत्य पुछू तँ हमरा अहाँक लग जीबए लेल समय नञि अछि ! हमसब चाहतक पीछाँ भागि रहलहुँ-ए! कहियो हमसब संतुष्ट नञि भऽ रहलहुँ-ए, हुनके जेकाँ हमर अहाँक सोच अछि, एहिसब चक्करमे गरीब - धनिक सब भूखे मरि रहलहुँ-ए कियो अपन जीनन जी नञि पबैत छ्थि ! जीबए हेतु कनी विश्रान्ति चाही ! जीबए लेल कनी समय चाही, जीवन मँगनी भेटए-ए बस ज्ञान भेनाय जरुरी अछि !!

कैदीहरू दोहोरो दुःख खेप्न बाध्य jaleshwor

कैदीहरू दोहोरो दुःख खेप्न बाध्य
कमलेश मण्डल–महोत्तरी ६ जेठ/परिबन्धमा परेर जेल जीवन बिताउनु परेको पीडा भोगिरहेका जलेश्वर कारागारका कैदीहरू वर्षा र हुरीबतासका कारण दोहोरो दुःख भोग्न बाध्य भएका छन् । वर्षासँगै आएको हावाहुरीका कारण महिला र पुरूष बन्दी तर्फको छतको कर्कट पत्ता (टिनको छाना) उडाएपछि खुलाआकाश मुनि बस्न बाध्य भएपछि कैदीहरू थप संकटमा परी दोहोरो दुःख भोग्न बाध्य भएका छन् । महिला बन्दी तर्फ दोस्रो तल्ला र पुरूष तर्फको तेस्रो तल्लाको टिनको छाना हावाहुरीले उडाएपछि विगत दुई साता देखि खुला आकाश मुनि सुत्न, बस्न, खाना पकाउन उनीहरू बाध्य भएको जेल प्रशासनले जनाएको छ । कर्कट पत्ता उडाउनाले दिन भरी तातो घाममा र रातको चीसोका कारण कैदीहरू विरामी पर्न थालेका छन् । कैदीहरू पालो पालो गरेर खाना बनाउन गरेका छन् । छानो उडाएपछि चर्काे घामका कारण बसिन नसक्नु भएको ज्यानमार्ने मुद्दा अन्तर्गत मुद्दा खेपीरहेका धनुषा रजौलका सुरेन्द्र मुखियाले गुनासो पोखे । सरकारले र जेल प्रशासनले ध्यान नदिँदा छाना छाएको छैन दुखेसो पोखदै अर्को कैदी ललन महतो भन्छन कैदीहरूलाई जहाँ पनि हेला भएको छ । छाना मर्मत तत्काल जेल प्रशासनले गर्नु पर्ने उनले भने । विगत दुई साता देखि पटक पटक आउने हावाहुरी सँगै वर्षाकाकारण कैदीहरूको ओढ्ने ओछयाउने लुगा पनि भिजेको उनीहरू बताउ“छन् । मर्मत अभावमा जीर्ण भवनको छतको छाना पनि उडाएका कारण वर्षा भएपछि पुरूष र महिला बन्दी गृहमा ओत लाग्न ठाउँ समेत छैन । ओढने ओछयाउने समेत भिजने गरेको घाम, चिसो र अनिदोले प्रायः कैदीहरू विरामी समेत पर्न थालेका छन् । कानुन र प्रकृतिको दोहोरो पीडामा परेका हाम्रो उद्धारका लागि सरकार कहाँ छ र ? कैदीहरू प्रश्न गर्छन् । हावाहुरी पानी आएपछि उडाउन लागेको छाप्रो स्याहार्नु कि नानीहरू स्याहार्नु दुबै समस्या यहाँका महिला बन्दीहरूको रहेको कुरा कर्तव्य ज्यान मुद्दामा कैद भुक्तान गरिरहेका राजविराजकी सरोजी सिंह भन्छन् । कैदी भएकै कारण न्यूनतम आवश्यकता तर्फ समेत कारागार प्रशासनले ध्यान नदिएकाले त्यस्तो आवश्यकता आएको हो उनी भन्छन् ।आफ्नो छाना र भ्mयालको हविगत बताउँदै अर्का महिला बन्दी उषा झा भन्छन् छाना भ्mयाल मर्मत गर्न तत्काल जलेश्वर प्रशासनसँग माग गर्नु भयो । राणा कालमै बनेको नेपालकै पुरानो मध्ये जलेश्वर कारागार भित्र जम्मा ३ सय ४२ जना बन्दी रहेको मा २८ महिला र आश्रित ९ जना बालबालिका रहेको छ । १ सय ३५ कैदी क्षमता राख्ने प्राचिन जेल जीर्णशीर्ण अवस्थामा रहेको र जुनसुकै बेला भत्कने संभावना समेत रहेको छ । अभिभावकका कारण जेल जीवन विताउँदै आएका ९ बालबालिका पढनबाट समेत बन्चित भएका छन् । कर्कट पत्ता छाउन तथा जेल मर्मत सम्भारका लागि कारागार व्यवस्था विभाग केन्द्रीय कार्यालयमा पटकपटक बजेट माग गर्दा पनि कुनै सुनवाई हुन नभएको जलेश्वर कारागारका जेलर डा.सोमेन्द्र ठाकुर भन्छन् । यस तर्फ सवैको ध्यान र सहयोग हुनु पर्ने तर्क राख्नु भयो ।

तराई मरुभूमिमा परिणत हुदै

MADHESHVANI WEEKLY
बी.पी. साह (काठमाडौं)/लक्ष्मण यादव (जनकपुर)/चन्दन यादव (सप्तरी)/कमलेश मण्डल (महोत्तरी)/ओमनारायण साह (रौतहट)/मो. इमरान खान (कपिलवस्तु)
तराई राजनीतिक रूपले अशान्त छँदैछ, विभिन्न सशस्त्र गतिविधि चल्दैछ र हत्या हिंसा कायमै छ । तराईवासीको अवस्था राजनीतिक रूपमा र शासकीय पद्धतिमा न्यून छन् । अहिले सबै शोषक, शासक र अपराधीको नजर तराईको वनजंगलमाथि परेको छ । हरियो वन तराईको धनलाई सखाप पार्ने विभिन्न प्रपञ्च रचिएको छ । सरकारी निकायबाट वन फडानी कार्य हुँदैछ भने विभिन्न क्षेत्रका मानिसहरू तराईको वन मास्दै बसोबास गर्न थालेकाछन् । तराईलाई मरूभूमि बनाउन सरकारी निकायबाट विभिन्न क्रियाकलाप भएकै हो, चाहे त्यो गिट्टी बालुवा निकासी देखि काठ दाउराको निकारीसम्म । तराईका जंगलहरूलाई सामुदायिक जंगल बनाइएको कुरा विभिन्न सञ्चार माध्यमहरूमा आइरहेको हुन्छ तर वास्तविकता बेग्लै छ । तराईका जंगललाई सामुदायिकको नाममा केही सीमित व्यक्तिको अधिनमा राखिएको छ । उनीहरू आफ्नो ढंगले वन फडानी गर्दै जिल्ला वन कार्यालयलाई भाग वन्डा दिँदै तराईलाई मरूभूमिकरण गर्नमा लागेका छन् । नेपाल रेन्जर संघले तयार पारेको एक रिपोर्ट अनुसार — कूल ३९ प्रतिशत वनमध्ये २० प्रतिशत तराईको वन सखाप भइसकेको छ । अब मात्र १९ प्रतिशत वन बाँकी छ । उक्त तथ्यांक अनुसार तराईमा प्रतिवर्ष ११ सय हेक्टरको दरले तराईको वन विनास हुँदैछ । सरदरमा प्रतिदिन ३ हेक्टर वन विनास हुँदैछ । तथ्यांकले देखाएअनुसार सरदर प्रतिदिन २ हजार साईकल काठ दाउरा निकासी हुँदैछ । भित्री तराईमा हालसम्ममा लगभग २ लाख ५० हजार देखि ३ लाखको हाराहारीमा वन मासेर घर टहरा निर्माण भएको छ । जसमा बारा जिल्लामै लगभग १ लाख घर टहरा निर्माण भएको छ । नेपाल रेन्जर संघको तथ्याङ्क अनुसार यसै दरले तराईको वन विनास हुँदै जाने हो भने अबको २० वर्षमा तराई मरूभूमिमा परिणत हुनेछ । यसको कारण समग्र वातावरणको सन्तुलन बिग्रिदै गएको देखिन्छ । वनजंगल विनासको कारण अतिवृष्टि, अनावृष्टिको र तापक्रमको शिकार तराईका किसान हुँदैछन् ।
जनकपुरबाट लक्ष्मण यादवले जनाएअनुसार धनुषाको कूल वनमध्ये लगभग ६० प्रतिशत वन विनास भइसकेको छ । वन फडानीमा स्थानीय सरकारी निकायका कर्मचारीहरुको पनि संलग्नता छ । उनका अनुसार धनुषा जिल्लामा लगभग वन मासेर ८ सय घर टहरा निर्माण भएको छ । हालै चिसापानी–धारापानी वन क्षेत्रमा रहेको ३ सय घर टहरालाई जिल्ला प्रशासन धनुषा र अन्य निकायहरूको सहयोगमा जलाइएको थियो । पुनः ती स्थानहरूमा टहराहरू निर्माण हुन थालेको छ । यादवका अनुसार यस्तै तरिकाले वन मासिदै जाने हो भने धनुषाको वन लगभग १०–१२ वर्षसम्ममा वन सखाप हुन्छ । सप्तरीबाट चन्दन यादव लेख्छन् सप्तरी जिल्लाको महेन्द्र राजमार्गको छेउछाउमा पर्ने सम्पूर्ण वनहरू विनास भइसकेको छ अब भित्री तराईको वन सखाप हुने क्रममा छ । उनका अनुसार विभिन्न नाका हुँदै काठ दाउरा र गिट्टी बालुवाहरू भारत निकासी हुँदैछ । सप्तरीमा वनको काठ दाउरामा आश्रित परिवारको संख्या पनि निकै छ ।
महोत्तरीबाट कमलेश मण्डल लेख्छन् सरकारी कर्मचारीको संलग्नतामा काठ तस्करले महोत्तरीको उत्तरी क्षेत्रबाट लाखौं मूल्य बराबरको सालको जंगल फडानी गरी भारत निकासी गर्दै आएका छन् । महोत्तरीको माइस्थान, खयरमारा, पाटु, गौरीवास लक्ष्मीनिया गाविस क्षेत्रमा पर्ने सालको सरकारी जंगल फडानी गर्दै आएका काठ तस्करले अहिलेसम्म हजारौं रूख कटान गरिसकेका छन् । सदरमुकाम जलेश्वर देखि ४०÷५० किलोमिटर उत्तरमा पर्ने सो क्षेत्रमा भइरहेको जंगल फडानीको सूचना सम्बन्धित निकायले पाएको छ । सूत्र भन्छ भइरहेको काठ तस्करी र जंगली फडानी नियन्त्रण गरी संलग्न व्यक्ति पक्राउ गर्नु जिल्ला वन कार्यालयले कुनै प्रयास गरेको छैन । सदरमुकामसित सम्बन्धित कार्यालयको निगरानी सो क्षेत्रमा नपर्ने हुँदा काठ तस्करले लगातार जंगल फडानी गर्दै आएका छन् ।
वनको बढ्दो विनासका कारण त्यस क्षेत्रका स्थानीय हरूले जंगल फडानीको जानकारी जिल्ला वन कार्यालय बर्दिवासलाई दिने गरेतापनि वन अधिकारीले बेवास्ता गरेका छैन् ।
अहिले सो क्षेत्रको जंगल १ हजार भन्दा बढी सालका रूखहरू काटिएका छन् । सो क्षेत्रमा सालको जंगल फडानी गर्ने गराउने माथि वन कार्यालयले कारवाही नगरेपछि काठ तस्करी एवं वन फडानीमा कर्मचारीको मिलोमतो र संलग्नताको पुष्टि भएको छ ।
सरकारले वन विनास भएको भन्दै काठ कटान र निकासीमा रोक लगाएपनि महोत्तरीमा वन फडानी बढेको छ । दुई महिना यता बाँके मरहा, खयरमारा, गौरीवास, लक्ष्मीनिया जंगलको अवैध कटानी बढेको वन अधिकृत बताउँछन् तर वनको अवैध कटानी रोक्ने तर्फ वन कार्यालयले चासो देखाएको छैन । सरकारले केही महिला पहिले काठ कटान र निकासीमा रोक लगाएको थियो । सिमा सशस्त्र प्रहरी बल जलेश्वरबाट खटिगएको गस्ती टोलीले दुई महिना (माघ फागुन) को अवधिमा ९ लाख ७५ हजार मूल्य बराबर ६ सय ६१ क्यूफीट अवैध काठ सहित केही मान्छे, गाडा गोरू पक्राउ गर्नुले पनि काठ तस्करी र वन फडानी बढेको पुष्टि गर्छ । जंगल फडानी र तस्करी नियन्त्रण गर्ने मातहतका सवै सुरक्षा बेस क्याम्पलाई निर्देशन दिइएको कुरा सिमा सशस्त्र प्रहरी बल जलेश्वरका सशस्त्र प्रहरी उपरीक्षक जनक बहादुर बोहराले बताएका थिए । त्यस्तै खिम्ती ढल्केवर २ सय २० केमी परियोजनाको प्रसारण लाइनका लागि जंगल बीचबाट दुई तिर १५÷१५ मिटर रूख काटनु पर्ने हुन्छ महोत्तरीमा ३ हजार ६ सय ३३ वटा रूख काटनु पर्ने छ तर त्यसको नाममा पनि बढी जंगल फडानी गरिएको छ ।
सामुदायिक वनका पदाधिकारीहरू समेत काठ निकासीमा लगाएको रोकले वन तस्करलाई प्रोत्साहन गरिरहेको बताउँछ । सामुदायिक वन उपभोक्ता महासंघका जिल्ला अध्यक्ष विनोद घिमिरेले प्रतिबन्धबाट सामुदायिक वनहरूको कारोबार ठप्प भएको र तस्करहरूले रातारात र दिनमा पनि जंगलमा पसेर जंगल विनास गरिरहेका बताए । सरकारले वन जोगाउनको लागि काठ कटान र निकासीमा रोक लगाए यसले काठ तस्करी झन बढाएको छ त्यस्तै हो भने यसरी निकासीमा रोक लगाउनुको कुने अर्थ छैन । तर मन्त्रालयबाट सरूवा भई आउनु भएका जिल्ला वन कार्यालय बार्दिवासका प्रमुख वन अधिकृत विन्दु मिश्र विगत एक महिना देखि अनुपस्थिति भएका कारण सम्पर्क हुन सकेन ।
यसैगरी रौतहटबाट ओमनारायण साह भन्छन् अन्य जिल्ला जस्तै रौतहटमा पनि वन विनास भएको छ, र हुने क्रम जारी छ । यहाँ केही सामुदायिक वनहरूको नाममा विभिन्न निकायको मिलेमतोमा वन विनास गरिदैछ । प्रशासनले गाँजा खेतिमा लागेका किसानलाई दुःख दिन थालेपछि उनीहरू अब गाँजा खेति छोडेर वन पैदावरमा आश्रित हुँदैछन् र दिनहुँ लाखौं मूल्य बराबरको काठ दाउरा बेचबिखन गर्छन् ।
त्यस्तै कपिलवस्तु जिल्लाबाट मो. इमरान खान लेख्छन् कपिलवस्तु जिल्लाको विभिन्न स्थानमा सुकुम्वासीको नाममा हजारौं घर टहरा निर्माण गरिएको छ । उनीहरूले कयौं हेक्टर वन जंगल विनास गरिसकेका छन् र तीव्र रूपले वन फडानी हुँदैछ । ती सुकुम्वासीहरू वन पैदावरमा आश्रित भएकोले वन कटानी उनीहरूको पहिलो प्राथमिकतामा छ । यसै क्रममा तराईको वन विनास हुँदै जाने हो भने अब आउने पीढिले तराईलाई मरुभूमि देख्नेछन् र तराईवासीलाई काठ दाउरा अन्यत्रबाट ल्याउनेपर्ने हुन्छ ।